स्तोत्र संग्रह – Stotra Sangrah

स्तोत्र संग्रह - Stotra Sangrah

“स्तोत्रेण कस्य न तुष्यति” अर्थात स्तोत्र किसे तुष्ट नहीं करता है अथवा स्तोत्र द्वारा किसे तुष्ट नहीं किया जा सकता है अर्थात स्तोत्र द्वारा सबको तुष्ट किया जा सकता है। इसका भाव यह है कि हम दिव्यता की प्राप्ति चाहते हैं तो हमें देवताओं के कृपा की आवश्यकता होती है एवं कृपा उसी पर की जाती है जिससे संतुष्ट हों। इसलिये देवताओं को संस्तुष्ट करना अत्यावश्यक होता है। कुल मिलाकर हमें इहलोक और परलोक सर्वत्र देवताओं के कृपा की आवश्यकता होती है और इसके लिये आवश्यक होता है कि देवताओं को संस्तुष्ट रखें और देवताओं को संतुष्ट करने का सबसे सरल मार्ग है स्तोत्र पाठ करना।

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शिव स्तोत्र संग्रह

महामृत्युंजय स्तोत्र संग्रह

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अग्नि स्तोत्र

अन्यान्य स्तोत्र

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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